मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

यादें



बहुत हसीन होती हैं यादें , तेरे - मेरे साथ रहती हैं यादे |
कुछ दर्द तो कुछ में खुशी , फिर भी सुकून देती हैं यादे |

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

वक्त


वक्त के गुजरने का न तुम इंतज़ार करो |
लड़ो मुसीबतों से वक्त को न बदनाम करो |
वक्त को भी हम सब ने मिलकर बनाया है |
सुइयों को थामने से वक्त कहाँ रुक पाया है |

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

पहचान


क्या मज़ा जिंदगी में जिसमे  तू - तू न रहे |
क्या मज़ा जिंदगी में जिसमे मैं - मैं न रहूँ  |
मज़ा तो तब है जब कुछ ऐसा हो जाये |
की मैं - मैं ही रहूँ और तू - तू  ही  रहे |

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

घरोंदा


ये जो तिनको - तिनको में बिखरा है घरोंदा अपना |
जरा समेट कर लाओ की बन जाये आशियाँ अपना |

गुरुवार, 5 मई 2011

बरमूडा ट्राईएंगल



बरमूडा ट्राईएंगल यह समुद्र का ऐसा  स्थान है जहां कोई भी जलयान या पनडुब्बी गायब हो जाती है और लौटकर  वापस नहीं आती |

बुधवार, 4 मई 2011

पहली महिला अंतरिक्ष यात्री


रूस की  वलेन्तीना तेरेश्कोवा  ( valentina tereshkova ) पहली महिला अंतरिक्ष यात्री थी जिन्होंने ने अन्तरिक्ष में उड़ान भरकर पृथ्वी की परिक्रमा की थी |

मंगलवार, 3 मई 2011

सबसे लम्बे दिन रात



नार्वे एक एसा स्थान है जहां पर मई  से जुलाई तक सूरज नहीं छिपता | इसे ' लैंड ऑफ़ द मिडनाईट सन  ' भी कहते हैं |

सोमवार, 2 मई 2011

प्रसिद्ध फूटबाल खिलाड़ी पेले


ब्राजील का  फूटबाल खिलाड़ी पेले दुनियां का इतना प्रसिद्ध व्यक्ति है कि उसे कोई पत्र ' पेले ब्राजील ' के पते पर भेजने से भी प्राप्त हो जाता है |

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

आस्कर पुरस्कार से सम्मानित प्रथम भारतीय महिला भानु अथैया



        भानु अथैया ( Bhanu Athaiya ) एसी पहली भारतीय व्यक्ति रहीं , जिन्हें यह गौरव  प्राप्त हुआ | एटनबरो की बहुचर्चित फिल्म ' गाँधी ' की ड्रेस डिजानिंग के लिए उन्हें आस्कर परुस्कार से सम्मानित किया गया था |  

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

टूथब्रश का अविष्कार

   टूथब्रश का इतिहास सेंकडों साल पुराना है | पहले दांतों की सफाई के लिए टहनी का इस्तेमाल किया जाता था , लेकिन 26 जून , 1948 को चीन में एक ऐसा  ब्रश तैयार किया गया , जिससे दांतों की सफाई टहनी या दातुन की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह से हो सकती थी | इसका अविष्कार 26 जून को किया गया था , इसलिए 26 जून को दुनिया भर में टूथब्रश डे मनाया जाता है | टूथब्रश के अविष्कार के शुरुवाती दोर में इसका हेंडल हड्डी या लकड़ी का बना होता था | दांतों को रगड़ने के लिए उसमें जानवरों के बाल लगे होते थे | धीरे धीरे इसके स्वरूप में और भी बदलाव आता गया | चीन में टूथब्रश के अविष्कार के बाद 1780 में इंग्लेंड में विलियम एडिस नाम के व्यक्ति ने इसके सवरूप में परिवर्तन करके इसे आधुनिक बनाया | 7 नवम्बर , 1857 को अमेरिका के एचएन वास्वर्थ ने टूथब्रश का पेटेंट ( जिसका पेटेंट नंबर _18 , 653 ) हासिल किया | आज हम जिस टूथब्रश का उपयोग कर रहें हैं उसका बड़े पैमाने पर उत्पादन 1938 में शुरू किया गया | 

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

पतंग का अविष्कार

ऐसा माना जाता है की पतंग का अविष्कार चीन में हुआ | दुनियां की पहली पतंग 469 बीसी में बनाई गई थी | धीरे - धीरे पतंगें बर्मा , जापान , कोरिया , अरब , उत्तरी  अफ्रीका और भारत में नज़र आने लगी | प्रारंभिक दिनों में केवल रेशम के महीन कपडे  से ही पतंगों का निर्माण होता था , क्युकी ये वजन में हल्की होने के कारण आसानी से उड़ सकती थी | धीरे - धीरे इसके विस्तार के साथ ही इसे बनाने के लिए  अन्य  महीन कपड़ों का उपयोग किया जाने लगा | कागज का अविष्कार होने के बाद से पतले कागज को ही पतंग बनाने के लिए उपयुक्त माना गया | गौर करने वाली बात ये है कि पतंगों के पारम्परिक से लेकर आधुनिक रूप तक बांस का प्रयोग निरंतर जारी रहा | भारत की लोक भाषा में पतंग को कनकौए या कनकैया कहकर पुकारा जाता था | थाईलेंड में पतंगें वंश परम्परा की प्रतीक रहीं हैं | थाईलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुँचानें के लिए बरसात के दिनों में अपनी - अपनी पतंगें उड़ाया करते थे | बाली में जुलाई महीने के अंत में एक उत्सव में पतंगें उड़ाकर ईश्वर से अच्छी फसल और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है | बरमूडा में इस्टर के अवसर पर बांस व् रंगीन धागों से बनी पतंगें उड़ानें का चलन है | इस तरह राजस्थान , वाराणसी , अहमदाबाद , जयपुर , वडोदरा , हैदराबाद आदि में मकर संक्रांति पर पतंग  उड़ाने का प्रचलन है और इस दिन को लोग विशेष रूप से मनातें हैं |

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

स्काई ट्री

 
जापान के टोक्यो में निर्माणाधीन  स्काई ट्री  ने दुनिया का सबसे ऊँचा टावर ( 601 मीटर  ) होने का दावा किया है | इसने चीन के कैंटन टावर ( 600 मीटर ) की ऊंचाई को पीछे छोड़ते हुए यह रिकार्ड बनाया है | इस साल के अंत तक इसके पूरा होने ( 634  मीटर तक ) की उम्मीद है |

मंगलवार, 22 मार्च 2011

दृष्टि का अंतर

    
विदेश में एक बार स्वामी विवेकानंद के गेरुए कपडे देखकर सड़क पर
चलने वाले हंस पड़े | स्वामी जी ने मुस्कुराते हुए इतना ही कहा __ ' आपके 
देश में मनुष्य को दर्जी सभ्य बनाता है , पर में उस देश से आया हूँ , जहां ज्ञान 
और त्याग से सभ्य बना जाता है | '

________________________________________________________________________________________पवित्र हाथ ________


         
      गुरु गोविन्द सिंह जी को प्यास लगी  , उन्होंने गाँव में जाकर कहा  _
' मुझे पवित्र हाथों  से पानी पीना है | ' लोग हाथ धोकर और बर्तन मांझ कर पानी लाये |
गुरु ने कहा ___ ' हाथ परमार्थ के लिए श्रम करने से पवित्र होते हैं |मेरा तात्पर्य एसे ही
सज्जन के हाथों से जल पीने से था | 'वैसा व्यक्ति न मिलने पर वे प्यासे ही आगे बढ़ गए |

गुरुवार, 17 मार्च 2011

मानव मन


श्रीमद्भगवद्‌गीता सनातन धर्म के पवित्रतम ग्रन्थों और संसार के सबसे गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्यवादी ग्रंथों में से एक है। श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह एक महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एकउपनिषद है । इसमें एकेश्वरवादकर्म योग, ज्ञानयोगभक्तियोग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।
              श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध  है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर अपने कर्तव्य से विमुख  हो जाता है और उसके पश्चात जीवन से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया हैऔर चारो तरफ से अपनों के बीच फंस जाने की वजह से वो सब कुछ छोड़ कर भाग जाना चाहता है इसी तरह बिल्कुल अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी - कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है। उसी उपनिषद ज्ञान को महर्षि वेदव्यास ने सामान्य जनों के लिए गीता में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है।


लोवेनिश  भगत  

मंगलवार, 8 मार्च 2011

भाग्य और पुरुषार्थ

राजा विक्रमादित्य के दरबार में कई ज्योतिषी थे। मगर वह कोई काम शुभ लग्न देख कर या ज्योतिषी की सलाह लेकर नहीं करते थे। एक दिन राज ज्योतिषी उनके पास आए और बोले, ' महाराज , आप के दरबार में कई ज्योतिषी हैं। आप की तरफ से उन्हें सभी सुविधाएं मिली हुई हैं, पर आप कभी हमारी सेवाएं नहीं लेते। आज मैं आप की हस्तरेखा देख कर यह जानना चाहता हूं कि आप ऐसा क्यों करते हैं ?' 
                      राजा ने कहा, 'मेरे पास इतना समय नहीं रहता कि मैं आप लोगों से सलाह ले सकूं। जहां तक हस्तरेखा की बात है तो मैं इसमें विश्वास नहीं रखता। लेकिन आप कह रहे हैं तो देख लीजिए।' हाथ देख कर राज ज्योतिषी चक्कर में पड़ गए। उनकी आवाज बंद हो गई। राजा ने पूछा, 'क्या हुआ। आप इतने परेशान क्यों हैं?' राज ज्योतिषी ने कहा, 'राजन्, आप की हस्तरेखाएं तो कुछ और कहती हैं। ज्योतिष के अनुसार आप को तो दुर्बल और दीन हीन होना चाहिए था। लेकिन आप तो इसके विपरीत हैं। हजारों साल से ज्योतिष विद्या पर विश्वास करने वाले लोग आपकी रेखाएं देख कर भ्रमित हो जाएंगे। समझ में नहीं आ रहा कि ज्योतिष को सच मानूं या आप की रेखाओं को।'
                विक्रमादित्य ने कहा , ' अभी तो आप ने मेरे बाहरी लक्षणों को ही देखा है, अब आप हमारे अंदर झांक कर देखिए।' इतना कह कर राजा ने तलवार की नोक अपने सीने में लगा दी। राज ज्योतिषी घबरा  कर बोले, 'बस महाराज। रहने दीजिए।'
                राजा ने कहा, 'ज्योतिषी महाराज, आप परेशान मत हों। ज्योतिष विद्या भी तभी सार्थक सिद्ध होती है जब मनुष्य में कुछ करने का संकल्प हो। हस्तरेखाएं तो भाग्य नहीं बदल सकतीं लेकिन मनुष्य में यदि पुरुषार्थ है, अभाग्य से लड़ने की शक्ति है तो उसकी नकारात्मक रेखाएं भी अपने रूप बदल सकती हैं। लगता है मेरे साथ ऐसा ही हुआ है।' राज ज्योतिषी अवाक  हो गए। 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

स्वभाव

  

" स्वभाव कच्ची  मिटटी की भांति होता है ,
      जिसकी कोई शक्ल  नहीं होती ,

इसे आकृति देने की आवश्कता होती है !                                                        

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

चरित्रवान बनो


चरित्रवान बनो , संसार स्वयं तुम पर मुग्ध होगी !  फूल खिलने दोगे तो मधुमंखियाँ स्वतः ही चली आएँगी!

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

प्रेम दो मांगो नहीं


प्रेम को परखो , प्रेम को देखो 
प्रेम मै ही कुछ  गलत छिपा है 
प्रेम के वस्त्रो मै है  जंजीरे  
बाहर आवरण , अन्दर कुछ और छुपा है 
तुम बनना तो चाहते हो उसके मालिक 
और करना चाहते हो उसपर कब्ज़ा... 
प्रेम तो  कोई वस्तु नहीं ?
जो तुम  उसका  करो एसे  उपयोग 
उससे होता उसका अपमान ... 
क्युकी कोई नहीं परतंत्रता चाहता 
अगर प्रेम  तुम चाहते हो 
तो बंधन मै क्यु बाँधते हो ?
इसी शर्त से प्रेम को है डर लगता 
और इसी डर से वो हमसे दूर  है रहता 
इसलिए अपने प्रेम को एसे  तुम शुद्ध करो 
तुम दो सबको , और मांगने की इच्छा ...
हरगिज़ तुम  ना करो !

सोमवार, 31 जनवरी 2011

सुविचार



ओरों के लिए जो जीता है !
                     ओरों के लिए जो मरता है !
उसका हर आंसू रामायण ,
                   और हर कर्म  एक गीता है !

बुधवार, 26 जनवरी 2011

स्वभाव



" स्वभाव कच्ची  मिटटी की भांति होता है ,
      जिसकी कोई शक्ल  नहीं होती ,
इसे आकृति देने की आवश्कता होती है !

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

यात्रा करो अनंत मन की


           इन्सान दिन- रात अपनी इच्छाओ की पूर्ति मै व्यस्त  रहता है ! अपने मतलब के लिए कही हाथ जोड़ता है और कही बाहें फेलता है ! लेकिन संसार मै न्याय से अन्याय , सम्मान से अपमान , ख़ुशी से दुखी होकर दुनिया का वैभव इकठ्ठा  किया जा सकता है पर परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती ! जब तक भगवान की कृपा नहीं होगी तब तक वैभव के शिखर पर बैठ कर भी इन्सान की आँखों से आंसू ही झरते रहते हैं ! जब भगवान की कृपा होती है तब आप जंगल मै रहो या वीराने मै हर जगह खुशियाली साथ रहती है सम्पुरण संतुष्टि प्रकृति मै या माया मै नहीं होती थोड़ी देर के लिए तो लगता है की सब कुच्छ मिल गया लेकिन कुच्छ देर बाद ही लगता है की अभी बहुत पाना बाक़ी है ! इन्सान प्रेम की अभिलाषा मै बहुत सारे रिश्ते बनाता है लेकिन प्रेम भी पूरा नहीं होता ! भटकाव तो सभी के जीवन मै आता है लेकिन एसा महसूस  होता है की थोड़ी दूर और चलूं  शायद कहीं शांति , विश्राम , या चैन मिल जाये !

     टेगोर ने कहा था -------मै हर रोज़ सुख के घर का पता मालूम करता हु लेकिन हर शाम को फिर भूल जाता हु ! सुबह से रोज़ शुरू करता हु लेकिन शाम तक अँधेरे के सिवा कुछ  प्राप्त नहीं होता ! अधिकतर लोग इस पीड़ा से त्रसत हैं ! क्या करे ? कोंन  सा मार्ग अपनाये ? जीवन का संघर्ष  खत्म होगा भी या नहीं ? हमारे जीवन मै शांति , प्रेम , आनंद लाभ  आएगा भी या नहीं ? इस तरह के प्रश्न इन्सान के मन मै लगातार उभरते ही रहते हैं ! हम सभी जानते हैं की जो वस्तु जहाँ  पर होती है वो वही से मिलती भी  है पर सबसे पहले तो जरुरत है की वस्तु  की सही खोज हो ! एसा न हो की वस्तु कहीं और हो और हम खोजे कहीं और  अगर हमारा सुख खो गया है तो एसा जान लेना चाहिए की सुख चैन  बाहर की वस्तु  नहीं अपितु ये तो अपने अन्दर का ही खज़ाना है ! शांति मन के अन्दर होती है , प्रेम हृदये मै होता है और आनंद आत्मा मै होता है ! इन सबको वही से प्राप्त करके वही सुरक्षित रखना पड़ता है ! अपनी कामना के अनुरूप ही इन्सान को आचरण करना चाहिए ! अगर व्यक्ति शांत रहना चाहता है तो उसे शांतिदायक वचनों का प्रयोग करना चाहिए ! उसकी दिनचर्या शांति से ही शुरू हो शांति से  ही खत्म हो एसा प्रयास करते रहना चाहिए चाहे कितनी भी मुसीबत क्यु  न आ जाये !                                            
                                                             

सोमवार, 17 जनवरी 2011

मनुष्य कि स्मृति


मनुष्य कि सोच अदभुत , मगर भ्रामक उपकरण होती है !
हमारे  भीतर रहने वाली स्मृति न तो पत्थर पर उकेरी गई
कोई पंक्ति है और न ही एसी कि समय गुजरने के साथ
धुल जाये , लेकिन अक्सर वह बदल जाती है , या कई बाहरी
आकृति से जुड़ जाने के बाद बढ जाती है !

शनिवार, 8 जनवरी 2011

सब्र रखिये और ख़ुशी बाँटिये !


 एक बीज अपने भीतर सब्र का डालिए और उसे फलने - फूलने
का मौका  दीजिये | आप पाएंगे की आपकी आत्मा पहले से ज्यादा
पोषित हो गई है | क्युकी दुनियां रोज़ नई है , बस उसे पहचानने
के लिए सब्र रखिये और ख़ुशी बाँटिये |

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

आनंद का दान



एक छोटा बच्चा एक आइसक्रीम पार्लर मै पहुंचा | उसने काउंटर पर जाकर कप की कीमत पूछी | वेटर ने कप की कीमत 15 रूपये बताई | बच्चे ने अपना पर्स खोला उसमे रखे पैसे  गिने | फिर उसने पूछा छोटे कप की कीमत क्या है ? परेशान वेटर ने कहा , 12 रूपये | लड़के ने उससे छोटा कप माँगा | वेटर को पैसे  दिए और कप लेकर टेबल की और चला गया | जब वेटर ख़ाली कप उठाने आया तो भाव विभोर हो गया | बच्चे ने वहां टिप के तौर  पर 3 रूपये रखे थे |

बात करना भी एक कला



बेहतर और अर्थपूर्ण ठंग से बात करना
एक महान कला है , लेकिन उतनी ही
महान कला वह भी है जिसमे आप रुकने
का सही  समय जानते हों !

जीवन



जीवन एक अनुत्तरित  प्रशन है , लेकिन अब भी
इसका सम्मान और महत्व बरकरार है !