शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तमन्ना ही तो हूँ



एक बार तमन्ना से , हम सवाल कर बैठे |
ओ तमन्ना ... तुम पूरी क्यों नहीं होती ?
उसने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में ... 
मुस्कराकर हमसे ही सवाल कर लिया ,
और वो बोली ...
मुझसे थी जिन्दगी या जिन्दगी से मैं थी ?
मैं तो हर तमन्ना में खुशी लेकर थी आती |
जब तुम ही न समझते , तो मैं क्या करती ? 
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

वो बंद किताबें




बंद कमरे में बंद किताबों सी पड़ी रहती है  ....
न जाने कौन सा वर्क कब कोई इतिहास रच जाये ....
कई दास्ताँनें  बंद है इन किताबों में  ....
पर कोई पन्नों को  पलटता ही नहीं ....
बस खामोश रहकर खुली आँखों से तकती है ,
ये वो दीवारे ......
जिन्हें रंगने भी कोई न आया आजतक  .....
हाँ दीवारों में कुछ रंग पहले से हैं मौजूद .....
जिन्हें देख - देखकर आँखों को सुकून ...
आया है अभी तक ....
पर दीवारों के वो बड़े - बड़े पेच .....
जिन्हें देखकर बरबस परेशान होता है ये मन
फिर भी इसे देखने , न रंगने कोई आया अभी तक .....