शनिवार, 8 दिसंबर 2012

सिर्फ अहसास



जब रात चूल्हे की आग सी ...
जलती है बुझी - बुझी |
तब चांदनी रात में यादें ...
करवट लेती हैं कभी - कभी |
एक खूबसूरत अहसास ...
सजा देती है मंजर को |
एक खामोश चुभन ...
फिर से रचती है नए कलाम |

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अन्याय



कई बार था यकीं दिलाया कि 
मैं गुनाहगार नहीं ...
पर ज्यों - ज्यों प्रतिकार करती 
त्यों - त्यों अपराध बढ़ता जाता 
मैं जिद्दी , उद्दंड कहलाने लगी 
जबकि दोष अपना कुछ भी न था 
पर खुद को सही साबित करना 
अविश्वास को बढ़ावा देना जैसा ही हुआ 
न किया गया अपराध भी अपराध जैसा लगने लगा |

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तमन्ना ही तो हूँ



एक बार तमन्ना से , हम सवाल कर बैठे |
ओ तमन्ना ... तुम पूरी क्यों नहीं होती ?
उसने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में ... 
मुस्कराकर हमसे ही सवाल कर लिया ,
और वो बोली ...
मुझसे थी जिन्दगी या जिन्दगी से मैं थी ?
मैं तो हर तमन्ना में खुशी लेकर थी आती |
जब तुम ही न समझते , तो मैं क्या करती ? 
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

वो बंद किताबें




बंद कमरे में बंद किताबों सी पड़ी रहती है  ....
न जाने कौन सा वर्क कब कोई इतिहास रच जाये ....
कई दास्ताँनें  बंद है इन किताबों में  ....
पर कोई पन्नों को  पलटता ही नहीं ....
बस खामोश रहकर खुली आँखों से तकती है ,
ये वो दीवारे ......
जिन्हें रंगने भी कोई न आया आजतक  .....
हाँ दीवारों में कुछ रंग पहले से हैं मौजूद .....
जिन्हें देख - देखकर आँखों को सुकून ...
आया है अभी तक ....
पर दीवारों के वो बड़े - बड़े पेच .....
जिन्हें देखकर बरबस परेशान होता है ये मन
फिर भी इसे देखने , न रंगने कोई आया अभी तक .....

बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

सबक सिखाती जिन्दगी



तन्हाइयां देख दर्द , 
अक्सर दस्तक देती रही | 
किसी से कुछ न कह ...
खामोशियों में पलती रही | 
आह ने जब भी , भीतर करवट ली |
माहोले सुकून में , गमगिनियाँ सी छाती रही |
ये बेजुबान दर्द ही , जीने के मायने समझाती रही |
और बेहतर जिन्दगी कि खातिर , ये हरदम मेरे साथ रही |

मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

फुर्सत में




आइने के सामने से , जो मैं गुजरी 
तो , उसी पल ठिठक कर , ठहर गई |
चेहरे पर , उम्र की लकीरों को देख...
यक़ीनन मैं थी डर गई |
पर उसी पल होंठों पर 
सुकूने मुस्कान भी बिखर गई |
शायद दिल में ... बीते लम्हों को 
इत्मिनान से जीने का सकून था |
और आज भी खुद पर भरोसा मुझे बेहिसाब था |

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

कुछ यादें



आज भी घर की दीवारों के 
रंग रोगन को कहीं - कहीं से खुरचा मैंने |
घर में रखी सभी किताबों के 
वर्क को पलट - पलट कर देखा मैंने 
उसकी जुबाँ से कुछ लफ्ज़ अब भी 
सुनने बाकि थे |
बस एक इसी उम्मीद से कि शायद ...
कहीं लिख कर रख गया होगा |
हाँ आज उसी एक उम्मीद से 
उसकी हर चीज़ को फिर से तलाशा मैंने |

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

हंसना ही जिन्दगी


पल - पल हमसे सवाल करती है जिन्दगी |
पूछती है कैसे हो और कैसी कट रही है जिन्दगी |
हम भी मुस्कुरा के हर बार उसको ये जवाब देते हैं |
लाख सितम सही फिर भी हंस के कट रही है जिन्दगी |

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

ख़ामोशी


खमोश  रहकर जो खुद को निखारा मैंने |
अपने भीतर ही सब कुछ  पा लिया मैंने |
ढूंडती फिर रही थी जिसे मैं दर - बदर |
अहसास से ही उसको तराश लिया मैंने |

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012


दिए कि लौ को जलाने के लिए , हवाओं को साथ होना होगा |
हाले दिल सुनाने के लिए , किसी अपने को साथ लाना होगा |
करे कोई शिकवा किसी से हज़ार , पर हमें न कोई गिला होगा |
राह में कितने भी कांटे रहे , जीवन को हंसके ही निभाना होगा |

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

सिर्फ चाह


जहाँ दर्द का आभास है , खुशी मिलती वही बेशुमार है |
दिन के खत्म हो जाने के बाद ही , रात का इंतज़ार है |
चलना पडेगा कठिन राह में , गर मंजिल कि तलाश है |
और काँटों कि चुभन के बाद ही , मिल सकता गुलाब है |