शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

यात्रा करो अनंत मन की


           इन्सान दिन- रात अपनी इच्छाओ की पूर्ति मै व्यस्त  रहता है ! अपने मतलब के लिए कही हाथ जोड़ता है और कही बाहें फेलता है ! लेकिन संसार मै न्याय से अन्याय , सम्मान से अपमान , ख़ुशी से दुखी होकर दुनिया का वैभव इकठ्ठा  किया जा सकता है पर परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती ! जब तक भगवान की कृपा नहीं होगी तब तक वैभव के शिखर पर बैठ कर भी इन्सान की आँखों से आंसू ही झरते रहते हैं ! जब भगवान की कृपा होती है तब आप जंगल मै रहो या वीराने मै हर जगह खुशियाली साथ रहती है सम्पुरण संतुष्टि प्रकृति मै या माया मै नहीं होती थोड़ी देर के लिए तो लगता है की सब कुच्छ मिल गया लेकिन कुच्छ देर बाद ही लगता है की अभी बहुत पाना बाक़ी है ! इन्सान प्रेम की अभिलाषा मै बहुत सारे रिश्ते बनाता है लेकिन प्रेम भी पूरा नहीं होता ! भटकाव तो सभी के जीवन मै आता है लेकिन एसा महसूस  होता है की थोड़ी दूर और चलूं  शायद कहीं शांति , विश्राम , या चैन मिल जाये !

     टेगोर ने कहा था -------मै हर रोज़ सुख के घर का पता मालूम करता हु लेकिन हर शाम को फिर भूल जाता हु ! सुबह से रोज़ शुरू करता हु लेकिन शाम तक अँधेरे के सिवा कुछ  प्राप्त नहीं होता ! अधिकतर लोग इस पीड़ा से त्रसत हैं ! क्या करे ? कोंन  सा मार्ग अपनाये ? जीवन का संघर्ष  खत्म होगा भी या नहीं ? हमारे जीवन मै शांति , प्रेम , आनंद लाभ  आएगा भी या नहीं ? इस तरह के प्रश्न इन्सान के मन मै लगातार उभरते ही रहते हैं ! हम सभी जानते हैं की जो वस्तु जहाँ  पर होती है वो वही से मिलती भी  है पर सबसे पहले तो जरुरत है की वस्तु  की सही खोज हो ! एसा न हो की वस्तु कहीं और हो और हम खोजे कहीं और  अगर हमारा सुख खो गया है तो एसा जान लेना चाहिए की सुख चैन  बाहर की वस्तु  नहीं अपितु ये तो अपने अन्दर का ही खज़ाना है ! शांति मन के अन्दर होती है , प्रेम हृदये मै होता है और आनंद आत्मा मै होता है ! इन सबको वही से प्राप्त करके वही सुरक्षित रखना पड़ता है ! अपनी कामना के अनुरूप ही इन्सान को आचरण करना चाहिए ! अगर व्यक्ति शांत रहना चाहता है तो उसे शांतिदायक वचनों का प्रयोग करना चाहिए ! उसकी दिनचर्या शांति से ही शुरू हो शांति से  ही खत्म हो एसा प्रयास करते रहना चाहिए चाहे कितनी भी मुसीबत क्यु  न आ जाये !                                            
                                                             

2 टिप्‍पणियां:

शिव शंकर ने कहा…

इन्सान प्रेम की अभिलाषा मै बहुत सारे रिश्ते बनाता है लेकिन प्रेम भी पूरा नहीं होता ! भटकाव तो सभी के जीवन मै आता है लेकिन एसा महसूस होता है की थोड़ी दूर और चलूं शायद कहीं शांति , विश्राम , या चैन मिल जाये !

सार्थक लेख,अच्छा लगा पढकर।
धन्यवाद जी।

Journalist Dinesh Sanwal ने कहा…

इन्सान दिन- रात अपनी इच्छाओ की पूर्ति मै व्यस्त रहता है ! अपने मतलब के लिए कही हाथ जोड़ता है और कही बाहें फेलाता है !लेकिन संसार मै न्याय से अन्याय , सम्मान से अपमान, ख़ुशी से दुखी होकर दुनिया का वैभव इकठ्ठा किया जा सकता है पर परमात्मा की कृपा नहीं पाई जा सकती ! जब तक भगवान की कृपा नहीं होगी तब तक वैभव के शिखर पर बैठ कर भी इन्सान की आँखों से आंसू ही झरते रहते हैं ! जब भगवान की कृपा होती है तब आप जंगल मै रहो या वीराने मै हर जगह खुशियाली साथ रहती है ........सार्थक लेख,अच्छा लगा पढकर।
धन्यवाद जी।