गुरुवार, 17 मार्च 2011

मानव मन


श्रीमद्भगवद्‌गीता सनातन धर्म के पवित्रतम ग्रन्थों और संसार के सबसे गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्यवादी ग्रंथों में से एक है। श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था। यह एक महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एकउपनिषद है । इसमें एकेश्वरवादकर्म योग, ज्ञानयोगभक्तियोग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है। इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है।
              श्रीमद्भगवद्‌गीता की पृष्ठभूमि महाभारत का युद्ध  है। जिस प्रकार एक सामान्य मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं में उलझकर अपने कर्तव्य से विमुख  हो जाता है और उसके पश्चात जीवन से पलायन करने का मन बना लेता है उसी प्रकार अर्जुन जो महाभारत का महानायक है अपने सामने आने वाली समस्याओं से भयभीत होकर जीवन और क्षत्रिय धर्म से निराश हो गया हैऔर चारो तरफ से अपनों के बीच फंस जाने की वजह से वो सब कुछ छोड़ कर भाग जाना चाहता है इसी तरह बिल्कुल अर्जुन की तरह ही हम सभी कभी - कभी अनिश्चय की स्थिति में या तो हताश हो जाते हैं और या फिर अपनी समस्याओं से उद्विग्न होकर कर्तव्य विमुख हो जाते हैं। भारत वर्ष के ऋषियों ने गहन विचार के पश्चात जिस ज्ञान को आत्मसात किया उसे उन्होंने वेदों का नाम दिया। इन्हीं वेदों का अंतिम भाग उपनिषद कहलाता है। मानव जीवन की विशेषता मानव को प्राप्त बौद्धिक शक्ति है और उपनिषदों में निहित ज्ञान मानव की बौद्धिकता की उच्चतम अवस्था तो है ही, अपितु बुद्धि की सीमाओं के परे मनुष्य क्या अनुभव कर सकता है उसकी एक झलक भी दिखा देता है। उसी उपनिषद ज्ञान को महर्षि वेदव्यास ने सामान्य जनों के लिए गीता में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है।


लोवेनिश  भगत  

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