शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तमन्ना ही तो हूँ



एक बार तमन्ना से , हम सवाल कर बैठे |
ओ तमन्ना ... तुम पूरी क्यों नहीं होती ?
उसने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में ... 
मुस्कराकर हमसे ही सवाल कर लिया ,
और वो बोली ...
मुझसे थी जिन्दगी या जिन्दगी से मैं थी ?
मैं तो हर तमन्ना में खुशी लेकर थी आती |
जब तुम ही न समझते , तो मैं क्या करती ? 
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |

3 टिप्‍पणियां:

देवेंद्र ने कहा…

ख्वाब तो बनते और बिगड़ते रहते हैं, जिंदगी का तो अपना ही अंदाज होता, अब चाहे इसे ख्वाबों का मिलना समझे या खवाबों का टूटना। सपंदर कविता।

mridula pradhan ने कहा…

तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |
bahut achchi lagi......

PRAN SHARMA ने कहा…

SAHAJ BHAVABHIVYAKTI . BADHAEE
AUR SHUBH KAMNA