गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

वो बंद किताबें




बंद कमरे में बंद किताबों सी पड़ी रहती है  ....
न जाने कौन सा वर्क कब कोई इतिहास रच जाये ....
कई दास्ताँनें  बंद है इन किताबों में  ....
पर कोई पन्नों को  पलटता ही नहीं ....
बस खामोश रहकर खुली आँखों से तकती है ,
ये वो दीवारे ......
जिन्हें रंगने भी कोई न आया आजतक  .....
हाँ दीवारों में कुछ रंग पहले से हैं मौजूद .....
जिन्हें देख - देखकर आँखों को सुकून ...
आया है अभी तक ....
पर दीवारों के वो बड़े - बड़े पेच .....
जिन्हें देखकर बरबस परेशान होता है ये मन
फिर भी इसे देखने , न रंगने कोई आया अभी तक .....

7 टिप्‍पणियां:

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

intzaaar karna hoga..
kabhi to kitabo ka pathak aayega..
kabhi to darwaja khulega..
kabhi to gharrr ki awaaj ke saath pallle khulenge darwaje ke:))
behtareen!!

mridula pradhan ने कहा…

bahot achchi lagi.....

kuldeep thakur ने कहा…

पर दीवारों के वो बड़े - बड़े पेच .....
जिन्हें देखकर बरबस परेशान होता है ये मन
फिर भी इसे देखने , न रंगने कोई आया अभी तक .....

सुंदर भाव... http://wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww.kuldeepkikavita.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति .....

बेनामी ने कहा…

बेहद गहन रचना .......

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

अच्छी कविता...
गहन अभिव्यक्ति.....

सादर
अनु

Minakshi Pant ने कहा…

सभी दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया |