शुक्रवार, 2 मार्च 2012

ख़ामोशी


खमोश  रहकर जो खुद को निखारा मैंने |
अपने भीतर ही सब कुछ  पा लिया मैंने |
ढूंडती फिर रही थी जिसे मैं दर - बदर |
अहसास से ही उसको तराश लिया मैंने |

5 टिप्‍पणियां:

mridula pradhan ने कहा…

achcha kiya......

कविता रावत ने कहा…

sach khamoshi bahut kuch sikha deti hai..
sundar prastuti..

Satish Saxena ने कहा…

यही ठीक है .......
शुभकामनायें आपको !

कुमार राधारमण ने कहा…

अच्छी पंक्तियां हैं किंतु तस्वीर एकदम बेमेल है।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सुंदर, बहुत सुदर !