रविवार, 12 अप्रैल 2015

बिखरती ही रही
कभी सिमटी ही नही ।
वफ़ा के साये में
 बेवफाई पलटी रही ।
बातों किस्सों में
उलझकर रह गई ...
जमाना खामोश रहा
किसी की एक न चली ।
धुवाँ बनकर उड़ती रही हसरतें
ख्वाइशें जलकर राख होती गई
न इंतज़ार किसी का ...
और न मिलने की उम्मीद
इस कदर सिमटी जिंदगी
की सांसों की गुलाम हो गई ...
रात को घर बना लिया
सुबह की मेहमान बन गई ।

शनिवार, 3 अगस्त 2013

ख्याल



कौन हो तुम ?
कहाँ से आते हो ?
कहाँ चले जाते हो ?
कब आते हो ?
कब चले जाते हो ,
पता ही नहीं चलता 
पर हाँ ...
जब भी आते हो ...
जहन में सवाल छोड़ जाते हो ,
एक नाता सा जुड़ गया है तुमसे
कोई तो है ...
जो दिल के बहुत करीब है
बस इतना कहूँगी ...
मिलना एक बार फिर
ऐसे ही अंत से पहले |

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

खमोशी


चुप रहकर जो खुद को निहारा मैंने |
अपने भीतर ही सबको पा लिया मैंने |
ढूंडती फिर रही थी जिसे मैं दर - बदर |
अहसास से ही उसको तराश लिया मैंने |

एक छोटी सी मुस्कान बस

कही बारूद मंदिर में , कही शोले हैं मस्जिद में ,
खुदा महफूज़ रखे हम सबको इस छोटे से घरोंदे में |

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

सिर्फ अहसास



जब रात चूल्हे की आग सी ...
जलती है बुझी - बुझी |
तब चांदनी रात में यादें ...
करवट लेती हैं कभी - कभी |
एक खूबसूरत अहसास ...
सजा देती है मंजर को |
एक खामोश चुभन ...
फिर से रचती है नए कलाम |

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अन्याय



कई बार था यकीं दिलाया कि 
मैं गुनाहगार नहीं ...
पर ज्यों - ज्यों प्रतिकार करती 
त्यों - त्यों अपराध बढ़ता जाता 
मैं जिद्दी , उद्दंड कहलाने लगी 
जबकि दोष अपना कुछ भी न था 
पर खुद को सही साबित करना 
अविश्वास को बढ़ावा देना जैसा ही हुआ 
न किया गया अपराध भी अपराध जैसा लगने लगा |

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

तमन्ना ही तो हूँ



एक बार तमन्ना से , हम सवाल कर बैठे |
ओ तमन्ना ... तुम पूरी क्यों नहीं होती ?
उसने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में ... 
मुस्कराकर हमसे ही सवाल कर लिया ,
और वो बोली ...
मुझसे थी जिन्दगी या जिन्दगी से मैं थी ?
मैं तो हर तमन्ना में खुशी लेकर थी आती |
जब तुम ही न समझते , तो मैं क्या करती ? 
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |