ऐसा माना जाता है की पतंग का अविष्कार चीन में हुआ | दुनियां की पहली पतंग 469 बीसी में बनाई गई थी | धीरे - धीरे पतंगें बर्मा , जापान , कोरिया , अरब , उत्तरी अफ्रीका और भारत में नज़र आने लगी | प्रारंभिक दिनों में केवल रेशम के महीन कपडे से ही पतंगों का निर्माण होता था , क्युकी ये वजन में हल्की होने के कारण आसानी से उड़ सकती थी | धीरे - धीरे इसके विस्तार के साथ ही इसे बनाने के लिए अन्य महीन कपड़ों का उपयोग किया जाने लगा | कागज का अविष्कार होने के बाद से पतले कागज को ही पतंग बनाने के लिए उपयुक्त माना गया | गौर करने वाली बात ये है कि पतंगों के पारम्परिक से लेकर आधुनिक रूप तक बांस का प्रयोग निरंतर जारी रहा | भारत की लोक भाषा में पतंग को कनकौए या कनकैया कहकर पुकारा जाता था | थाईलेंड में पतंगें वंश परम्परा की प्रतीक रहीं हैं | थाईलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुँचानें के लिए बरसात के दिनों में अपनी - अपनी पतंगें उड़ाया करते थे | बाली में जुलाई महीने के अंत में एक उत्सव में पतंगें उड़ाकर ईश्वर से अच्छी फसल और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है | बरमूडा में इस्टर के अवसर पर बांस व् रंगीन धागों से बनी पतंगें उड़ानें का चलन है | इस तरह राजस्थान , वाराणसी , अहमदाबाद , जयपुर , वडोदरा , हैदराबाद आदि में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का प्रचलन है और इस दिन को लोग विशेष रूप से मनातें हैं |
8 टिप्पणियां:
Informative.Good.
बहुत ही बढ़िया जानकारी...
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
बहुत बढ़िया जानकारी.
आभार.
पतंग का इतिहास जानना बहुत अच्छा लगा ...
अरे वाह ...बहुत अच्छी जानकारी....
पतंग के बारे में रोचक जानकारी....
रोचक पोस्ट। वैसे पश्चिम में हर ऐसी चीज़ की खोज का श्रेय चीन को देने का रिवाज़ सा रहा है जिसके मूल के बारे में उन्हें पता न हो।
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