राजा विक्रमादित्य के दरबार में कई ज्योतिषी थे। मगर वह कोई काम शुभ लग्न देख कर या ज्योतिषी की सलाह लेकर नहीं करते थे। एक दिन राज ज्योतिषी उनके पास आए और बोले, ' महाराज , आप के दरबार में कई ज्योतिषी हैं। आप की तरफ से उन्हें सभी सुविधाएं मिली हुई हैं, पर आप कभी हमारी सेवाएं नहीं लेते। आज मैं आप की हस्तरेखा देख कर यह जानना चाहता हूं कि आप ऐसा क्यों करते हैं ?'
विक्रमादित्य ने कहा , ' अभी तो आप ने मेरे बाहरी लक्षणों को ही देखा है, अब आप हमारे अंदर झांक कर देखिए।' इतना कह कर राजा ने तलवार की नोक अपने सीने में लगा दी। राज ज्योतिषी घबरा कर बोले, 'बस महाराज। रहने दीजिए।'
राजा ने कहा, 'ज्योतिषी महाराज, आप परेशान मत हों। ज्योतिष विद्या भी तभी सार्थक सिद्ध होती है जब मनुष्य में कुछ करने का संकल्प हो। हस्तरेखाएं तो भाग्य नहीं बदल सकतीं लेकिन मनुष्य में यदि पुरुषार्थ है, अभाग्य से लड़ने की शक्ति है तो उसकी नकारात्मक रेखाएं भी अपने रूप बदल सकती हैं। लगता है मेरे साथ ऐसा ही हुआ है।' राज ज्योतिषी अवाक हो गए।
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा यह सुविचार।
पुरुषार्थ करने वाले का भाग्य निश्चित रूप से बदलता है
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