मनुष्य कि स्मृति
मनुष्य कि सोच अदभुत , मगर भ्रामक उपकरण होती है !
हमारे भीतर रहने वाली स्मृति न तो पत्थर पर उकेरी गई
कोई पंक्ति है और न ही एसी कि समय गुजरने के साथ
धुल जाये , लेकिन अक्सर वह बदल जाती है , या कई बाहरी
आकृति से जुड़ जाने के बाद बढ जाती है !
5 टिप्पणियां:
बिलकुल सही विचार हैं आप के| धन्यवाद|
संस्कार पर संस्कार पर पड़ते जाते हैं. यही मन की कार्यप्रणाली है. बहुत अच्छा सुविचार.
टिप्पणी करने के लिए शब्द पुष्टि करण (word verification) की प्रक्रिया हटा दें तो आसानी होगी.
समय और वातावरण के अनुसार सोच बदलती है ...
shukriya dosto
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