एक बार तमन्ना से , हम सवाल कर बैठे |
ओ तमन्ना ... तुम पूरी क्यों नहीं होती ?
उसने बड़े खूबसूरत अंदाज़ में ...
मुस्कराकर हमसे ही सवाल कर लिया ,
और वो बोली ...
मुझसे थी जिन्दगी या जिन्दगी से मैं थी ?
मैं तो हर तमन्ना में खुशी लेकर थी आती |
जब तुम ही न समझते , तो मैं क्या करती ?
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |
3 टिप्पणियां:
ख्वाब तो बनते और बिगड़ते रहते हैं, जिंदगी का तो अपना ही अंदाज होता, अब चाहे इसे ख्वाबों का मिलना समझे या खवाबों का टूटना। सपंदर कविता।
तमन्ना हूँ एक ही बार में , पूरी कैसे हो जाती |
bahut achchi lagi......
SAHAJ BHAVABHIVYAKTI . BADHAEE
AUR SHUBH KAMNA
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